Advertisement

ज्वालामुखी और उसके प्रकार, वितरण, प्रभाव और बचाव।

Source: Google


ज्वालामुखी ( Volcanoes ):- प्राकृतिक आपदाओं में ज्वालामुखी भी कम घातक संकट नहीं है। सैकड़ों वर्ष शांत रखने के बाद जब यह उद्गार करता है तो संभलने का मौका भी नहीं देता है। अभी हाल में ऐसी दी वारदातें जापान एवं फिलीपींस में हुई है। इनके द्वारा उद्भेदित लावा, गर्म जल और राख उर्वर भूमि और अधिवास को शमशान में बदल देते हैं। ज्वालामुखी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र प्रशांत सागर तटीय क्षेत्र है जिसे 'ज्वाला परिधि' ( Ring Of Fire ) के नाम से जाना जाता है। विश्व में कुल 500 से अधिक जाग्रत ( Active ) ज्वालामुखी हैं। ज्वालामुखी भी ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसका कोई विकल्प मनुष्य के पास नहीं है।




ज्वालामुखी के प्रकार और वितरण:- पृथ्वी के गर्भ में मैग्मा गर्म लावा, वाष्प एवं गैसें जब धरातल को तोड़कर बाहर आती है तो ज्वालामुखी उद्गार कहते है। लावा धरातल की चट्टानों को भी तोड़कर आसमान में उछाल देता है जिसे ( Bomb ) कहा जाता है। इनसे शंक्वाकार रूप में उद्भेदित सामग्री जमा होकर ज्वालामुखी पहाड़ी की रचना करती है। लेकिन जब धरातल में दरार बन जाता है और उससे लम्बे-चौड़े भू-क्षेत्र पर लावा आदि निकलने लगता है तो उसे दरारी उद्गार कहते है। विश्व मे पाए जाने वाले ज्वालामुखी तीन प्रकार के हैं।

1. सक्रिय अर्थात् जिनसे लगातार उद्गार होता रहता है। विश्व में ऐसे 500 से अधिक ज्वालामुखी है, 


2. प्रसुप्त ज्वालामुखी अर्थात जिनके कभी-कभी उद्गार होता है,


3. निष्क्रिय ज्वालामुखी अर्थात मृत प्राय ज्वालामुखी।


उद्गार स्वभाव और सामग्री के आधार पर भी इन्हें वर्गीकृत किया जाता है। जैसे हवाई तुल्य, वैलकेनियन तुल्य, स्त्रम्बोली तुल्य, पीलियन तुल्य, विसुविसियन तुल्य आदि।




              
Source: Google

  विश्व में ज्वालामुखी वितरण के तीन क्षेत्र हैं- (क) परिप्रशान्त पेटी, (ख) मध्य महाद्वीपीय पेटी और (ग) मध्य महासागरीय कटक मेखला। परिप्रशान्त पेटी में विश्व के सर्वाधिक ज्वालामुखी है जिनसे निकलने वाला पदार्थ रोशनी बिखेरता है फलतः इस पेटी को जवलमेखला ( Ring of fire ) कहा जाता है। यहाँ विश्व के 88% सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं। इस पेटी के ज्वालामुखी प्रधान क्षेत्रों में फिलीपाइन (98), अलास्का (35), जापान (33), मध्य एंडीज (22), दक्षिणी एंडीज (22), द.पू. न्यूगिनी (15), ग्वाटेमाला (14), क्यूराइल (3), कमचटका (9), मैक्सिको (9), उत्तरी एंडीज (9), लेसर एंटीलिस (9), निकारागुआ (7), न्युहेब्राइड (7), टांगा (6), कोस्टारिका (5) और न्यूजीलैंड (4) विशेष उल्लेखनीय हैं।


            मध्य महाद्वीपीय पेटी में भूमध्य सागर का अफ्रीकी तट, यूरोपीय और एशिया क्षेत्र के ज्वालामुखी अधिक सक्रिय है। इस क्षेत्र में सिसली, इटली, काकेसस, तुर्की, आर्मीनिया, ईरान आदि के ज्वालामुखी अधिक विनाशक हैं।




ज्वालामुखी का प्रभाव और बचाव:- ज्वालामुखी से निकला गर्म लावा, जहरीली गैस, जलवाष्प, राख, चट्टान चूर्ण आदि पर्यावरण को प्रदूषित कर जीवन को दूभर बनाते हैं। इनसे निकला द्रवित लावा मानव निर्माण और कृषि भूमि को शमशान बना देता है। वाष्प बाढ़ लाती है और गैस घुटन पैदा करती है जिससे एक साथ दो दैवी आपदा धन और जन की अपार क्षति करती है। 1783 में आइसलैंड के ज्वालामुखी से 10 हज़ार व्यक्ति, 2 लाख भेड़े, 28 हज़ार घोड़े और 11 हज़ार अन्य पशु काल-कलवित हो गए थे। इसी प्रकार 1902 में पश्चिमी द्वीप समूह के माउंट पीली ज्वालामुखी से 28 हज़ार मौतें हुई। 1919 में जापान का केलतु ज्वालामुखी 5.5 हज़ार लोगों को मौत के द्वार पहुंचा दिया। 1985 में कोलंबिया का भयानक उद्गार 25 हज़ार मौतों के लिए जिम्मेदार हैं।


                     अध्ययनों से पता चला है कि विगत 500 वर्ष की अवधि में तीन लाख से अधिक मौतें ज्वालामुखी के कारण हुई हैं। गर्म लावा और राख लाखों हेक्टेयर भूमि को अयोग्य बना चुके हैं और विशाल पैमाने पर जीव-जंतुओं का नाश हो चुका है। कहीं-कहीं इसकी विनाश लीला पूरी परिस्थितिकी तंत्र को पंगु बना देती है। जलवायु और मौसम का बदलाव भी उद्गार का परिणाम बताया जाता है। विशाल मात्रा में निकली धूल तापमान को घटा देती है। इसी प्रकार गंधक युक्त धूल और गैस से अम्ल वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।




        ज्वालामुखी जैसे आपदा से बचने के लिए अनेक उपाय होते रहे हैं जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से दूर मानव बसाव, ज्वालामुखी उद्गार के समय शीघ्र हटने की सुविधा, ज्वालामुखी उद्भेदन का पूर्वानुमान और ऐसी वनस्पतियों का रोपण जिनकी सहन क्षमता पर्याप्त हो। फिर भी आकस्मिक घटना के समय संभल पाना कठिन होता है। हाल के वर्ष में फिलीपाइन्स में ज्वालामुखी उद्गार भयानक प्रमाणित हुआ।





Theme images by tomograf. Powered by Blogger.