अल्फ्रेड नोबेल के सफलता की कहानी। (In Hindi)
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अल्फ्रेड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर, 1833 को स्वीडन के स्टॉकहोम में हुआ था । उनके पिता इमानुएल नोबेल एक प्रख्यात आविष्कारक थे, मगर अल्फ्रेड नोबेल के पिता पढ़े लिखे नहीं थे । जब अल्फ्रेड की अवस्था 4 वर्ष की थी, तब अल्फ्रेड के पिता को रूस जाने की अवश्यकता पड़ा । जिसके दौरान 1859 में नाइट्रोग्लिसरिन के दिवालिया हो जाने पर नोबेल के पिता ने स्वीडन आते ही नाइट्रोग्लिसरीन का शुरुआत कर दिया ।
सन् 1864 ई. में किसी कारखाने में विस्फोट हो जाने पर कारखाने में नोबेल के भाई काम करते थे, उस दौरान नोबेल के छोटे भाई की मृत्यु हो गयी थी। कारखाने के दुबारा से खोलने की अनुमति नहीं मिली। जिसके वजह से उन्होंने, मालारेन नामक तालाब पर बांध बना कर के उत्पादन जारी किया । एक दिन अचानक से एक प्रकार के विशेष कार्बन पैकिंग में नाइट्रोग्लिसरीन सुख कर शुष्क पदार्थ में बदल गया था । नाइट्रोग्लिसरीन के शुष्क में बदल जाने के घटना से उन्हें एक नयी खोज मिली जिससे वे आगे जाकर डायनामाइट का निर्माण किये। अल्फ्रेड ने विज्ञान, साहित्य, अर्थशास्त्र, रसायन, भौतिकी का अध्ययन किया था। जब नोबेल 17 वर्ष के उम्र के थे, तब वे रूसी, फ्रेंच, जर्मनी, अंग्रेजी जैसे जटिल भाषा बोलना आसानी से सीख लिये थे।
सन 1866 ई. जब अल्फ्रेड नोबेल 33 वर्ष के हो गए तब उन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन से भरी हुई परखनली को उलट पलट कर रहे थे कि अचानक से परखनली अचानक नीचे जाकर लकड़ी के गुड़े से भरे हुए डिबे में गिरी थी, जिसके कारण लकड़ी के गुड़े ने सोख लिया था। यदि नीचे जमीन पर गिरा होता, तो नोबेल और भी प्रयोगशाला के लोग भयावह तरिके से मर जाते। लकड़ी के गुड़े में मिली नाइट्रोग्लिसरीन को पता करने पर, पाया कि जितना कि द्रव्य रूप में था, फिर नोबेल नेंइट्रोग्लिसरिन के साथ सिलिका मिलने पर एक पेस्ट बनाया , जिसे किसी भी आकार में बदल सके । इन छड़ों का काम विस्फोट करना था । बाद में इसी से ही नोबेल ने डिटनेटर का आविष्कार सफलतापूर्वक कर लिया। ।
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